संतोष कुमार राय
दिल्ली-एनसीआर में लगातार गिरता भू-जल स्तर भविष्य में आने वाली बड़ी समस्या का संकेत है। केंद्रीय भू-जल बोर्ड द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर रिपोर्ट मई 2000 से मई 2017 के दौरान दिल्ली में भू-जल स्तर की स्थिति को व्यक्त करती है। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार रिपोर्ट में उल्लिखित है कि दक्षिणी दिल्ली, पश्चिमी, दक्षिण पूर्व, नई दिल्ली, उत्तर पूर्वी, उत्तर पश्चिमी, शाहदरा और पूर्वी दिल्ली में हालात खतरनाक हो चुके हैं। इन परेशानियों के बीच गिरते भू-जल स्तर पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हालत यह है कि राष्ट्रपति भवन व उसके पास भी भू-जल का स्तर काफी नीचे आ गया है। राष्ट्रीय राजधानी के नवीनतम सर्वेक्षण, जो 19 मार्च, 2018 को जारी किया गया था, ने कहा कि दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में कुछ स्थानों पर जल स्तर, जमीन स्तर से 20 से 30 मीटर नीचे चला गया है। दिल्ली के पांच जिलों में गिरते भू-जल स्तर के कारण हालात खतरनाक स्थिति में पहुंच गए हैं। यह हर साल एक से दो मीटर नीचे गिर रहा है। इसके विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समय रहते इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया तो आने वाले समय में हालात बिगड़ सकते हैं।
यह
समझने की जरूरत है कि भू-जल स्तर के रिचार्ज की प्रक्रिया क्या है? भूगर्भ
जल को पुनर्संरक्षित करने के लिए वर्षा का पानी तालाबों, कुओं, नालों के जरिये धरती के भीतर स्रावित
होता है, लेकिन दिल्ली-एनसीआर के अधिकांश तालाब अवैध
कब्जों के कारण नष्ट हो गए हैं, साथ ही कुआं अब अस्तित्व में
नहीं रहे। नालों में बारिश के पानी की बजाय शहरों और कारखानों का जहरीला पानी बहता
है और शहर के बाहर जाता है। आस-पास की सभी नदियां बुरी तरह से प्रदूषित हो चुकी
हैं। तेजी से बढ़ती जनसंख्या, बढ़ता औद्योगिकीकरण, फैलते शहरीकरण के अलावा ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन भी गिरते
भूजल स्तर के लिये जिम्मेदार हैं। दिल्ली का ज्यादातर हिस्सा कंक्रीट से ढक गया
है। यही कारण है कि वर्षा के पानी का धरती के भीतर स्राव नहीं हो रहा और भू-जल का
स्तर बढ़ने की बजाय लगातार नीचे जा रहा है। सरकारी स्तर पर एक नया प्रयास रेन वाटर
हार्वेस्टिंग के प्लांट लगाने की योजना शुरू हुई है, लेकिन
उसका दायरा अभी बहुत सीमित है।
दिल्ली-एनसीआर में भू-जल स्तर के
गिरने का एक बड़ा कारण है सभी क्षेत्रों में पेय जल की समुचित व्यवस्था का न होना।
इस कारण आम लोगों के द्वारा जलापूर्ति के वैकल्पिक साधनों जैसे समरसिबल और हैंडपंप
का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। दूसरा महत्वपूर्ण कारण है कि पिछले कुछ वर्षो में दिल्ली
में भवन निर्माण में वृद्धि हुई है, जिसमें बड़े
पैमाने पर पानी की खपत बढ़ी है। बड़ी–बड़ी निर्माण कंपनियाँ दिल्ली
में माल और कांप्लेक्स सोसाइटी के निर्माण में अवैध तरीके से भू-जल का प्रयोग कर रही
हैं, इसके साथ ही भू-जल बोर्ड की रिपोर्ट की अनदेखी करते हुए
तेजी से बड़े–बड़े स्विमिंग पूल का निर्माण कर रहे हैं। इनमें
भी भू-जल का बड़े पैमाने पर दोहन हो रहा है।
भू-जल के दोहन को रोकने और समुचित
जलापूर्ति की ज़िम्मेदारी सर्वाधिक सरकार की है, जिसमें सभी
सरकारी योजनाएँ पूरी तरह नाकाम रही हैं। निजी निर्माण कंपनियों द्वारा किए जाने
वाले भू-जल के दोहन पर किसी तरह का सरकारी अंकुश नहीं है और यदि नियमों में वह है
तो धरातल पर उसका कोई मतलब नहीं है। अब प्रश्न उठता है कि इसका समाधान क्या है? पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है की “ये समस्या
बहुत ही गंभीर है इस पर सरकार को गंभीरता से विचार करने की और वास्तविक रूप से एक
जल नीति को लागू करने की आवश्यकता है”। सरकार की ही विफलता
है कि दिल्ली के एक बड़े हिस्से तक पानी की सप्लाई अभी भी नहीं पहुँच पायी है। इस
समस्या के समाधान के लिए यह जरूरी है कि इस क्षेत्र के विशेषज्ञों के सुझाव अमल
में लाये जाय। इस दिशा में सबसे पहला और जरूरी कदम यह होगा कि सरकार सभी क्षेत्रों
में पानी की सप्लाई की व्यवस्था करे। दूसरा और अत्यधिक महत्वपूर्ण यह है कि निर्माण
कार्य तथा स्विमिंग पूल में उपयोग होने वाले पानी की सरकार द्वारा निगरानी की व्यवस्था
की जाय। तीसरा यह है कि सरकार इसकी भी व्यवस्था करे कि बरसात का अधिक से अधिक पानी
जमीन में जाये। चौथी बात इस संदर्भ में यह है कि आम लोगों के बीच इसकी जागरूकता
फैलाई जाय और लोगों को आने वाली समस्या से अवगत कराया जाय।
सरकार के साथ आम लोगों का भी यह
दायित्व है कि जल के दोहन को रोकने की आदत डाली जाय, परंतु
अधिकतर यह देखा जाता है कि आम जनमानस में इसके प्रति जागरूकता का अभाव दिखता है। इस
पर भी सरकार को ध्यान देना पड़ेगा,
नहीं तो आने वाला समय और भी कठिन होगा। पर्यावरण से जुड़ी हुई इस तरह की समस्याओं
पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। दिल्ली-एनसीआर में जल संकट से निपटने का
अभी तक कोई मुकम्मल समाधान नहीं आ पाया है। इसलिए यह जरूरी है कि सरकारी और
जनभागीदारी दोनों स्तर पर इसका समाधान निकले, जिससे किसी
भयावह स्थिति का सामना करने से बचा जा सके।
(27 मई, 2018 के युगवार्ता में प्रकाशित)