सन्तोष कुमार राय
मेरे द्वारा रचित एक छोटी सी कविता है जिसे आज ब्लाग पर
आप लोगों के लिए प्रकाशित कर रहा हूँ। अगर अच्छी लगे तो.....
अब मुझे पहले जैसा दिखाई नहीं देता,
लेकिन ये क्या? अभी तो
शास्त्रों के अनुसार एक चौथाई ही कटी है जिंदगी।
पहले की तरह अब बहुत कुछ बुरा भी नहीं लगता।
पहले किसी की छोटी से छोटी गलती पर भी उलझ
जाता था।
क्यों?
लेकिन आज! आज तो बड़े से बड़े अपराध को भी
देखकर चुप हो जाता हूँ,
और न सिर्फ चुप हो जाता हूँ, बल्कि
आगे बढ़ जाता हूँ।
थोड़ी देर रुककर कुछ सोचने की जहमत भी नहीं
उठाता।
अब मेरे कानों को भ्रष्टाचार, लूट, बलात्कार जैसे शब्दों से पहले जैसी घबराहट नहीं होती।
मेरे कान इन्हें सुनने के आदी हो चुके हैं...
कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं समाज के प्रति
अपना उत्तरदायित्व खो चुका हूँ?
रात को सोते समय सोचता हूँ कि अब मुझे पहले
जैसा दिखाई नहीं देता।
क्योंकि पहले दिल से देखता था अब आँख से
देखता हूँ....