हाँ ! हम ही दोषी हैं....


सन्तोष कुमार राय
कितना मजेदार होता है दोष देने वाले को ही दोषी बना देना । बचपन में जब किसी गलती पर हम झूठ का सहारा लेते थे और अपने छोटे भाई या बहन को दोषी सिद्ध करा देते थे और मन ही मन अपने बच निकलने की खुशी से गदगद हो जाते थे ।  लेकिन अचानक हमारी खुशी काफ़ुर हो जाती थी और हमारा बाल मन भयभीत हो उठता था । हमारे अभिभावक जब भाई-बहन को पीटना शुरू करते थे तो उसके रोने की आवाज हमें भी दहशत में डाल देती थी और अचानक हमारे मुंह से अपनी गलती का स्वीकार भाव निकलता था और हम भी भाई बहनों के साथ रोना शुरू कर देते थे । लेकिन उस गलती को स्वीकार करने के बाद जो संतोष मिलता था उसको बयां करना कठिन है । एक बात सच है कि मनुष्य जिस दिन गलती स्वीकार करना सीख जाता है उसी दिन उसके अन्तर्मन में ईमानदारी का स्थायी वास हो जाता है ।  
          अब समय बादल गया है और आज हम जिस समाज में जी रहे हैं और जिस समाज को देख रहे हैं, वह समाज न तो गलती स्वीकार करने का है और न ही ईमानदारी को अपना उसूल बनाने का । आज के समय में जो व्यक्ति ऐसा कर रहा है या तो उसे आज का समाज पागल करार देता है (जैसा दिग्विजय सिंह ने अन्ना को और अरविंद केजरीवाल को कहा था) या फिर वह खुद पागल हो जाता है। भारत सरकार के हमारे ईमानदार प्रधान मंत्री जी को ही देख सकते हैं । कितने ईमानदार हैं ! जब वे बोलते हैं... क्या कहने । ऐसा लगता है जैसे एक–एक शब्द से ईमानदारी की गंगा बह रही हो और सारे देशवासी उसमें भीगकर उन्हें तहे दिल से आशीर्वाद दे रहे हों । और देखकर तो लगता है कि इतना आशीर्वाद तो भागीरथ को भी लोगों ने नहीं दिया होगा । और यही नहीं जब गंगा के बरक्स सोनिया जी बोलती है तो जो मातृत्व झलकता है उसके लिए इस संसार में शब्द नहीं हैं । लेकिन अब क्या किया जाय ये जो कोयला है न इसने पता नहीं कहाँ से कुछ काला कर दिया । कितनी मुश्किल से राजा और कलमाड़ी को किनारे किया था और राहुल जी के लिए रास्ते को साफ सुथरा किया जा रहा था कि इसी में कैग वालों ने नया तमाशा खड़ा कर दिया । और विपक्ष को तो बस ऐसे मौके का इंतजार ही है । जमीन पर कुछ नहीं कर सकते, जनता के लिए कुछ नहीं कर सकते, तो क्या हुआ अगर विपक्ष का दर्जा मिला है तो देशवासियों को यह तो बता ही सकते हैं कि अगर हमे नहीं चुनोगे तो हम संसद ही नहीं चलने देंगे । अपने पिताजी का क्या जाता है । सरकार भी जनता की है और देश भी जनता का है और संसद को चलाने के लिए जो पैसा आता है वह भी जनता का है । तो विपक्ष का क्या है ? विपक्ष को तो जनता ने चुना नहीं है । कितनी अजीब बात है हर जगह पक्ष का चुनाव होता है, कहीं भी विपक्ष का चुनाव नहीं होता है । तो फिर विपक्ष क्यों जनता के लिए काम करे । अब चुने हो तो भुगतो ।
          खैर ले देकर यह सत्र भी रूखा-सुखा समाप्त हो गया लेकिन जनता बबूल के पेड़ से आम की प्रतीक्षा में पेड़ को निहारती रही । अब सरकार अपने पर लगे हुए कोयले के दाग को धोने की मंसा जाहिर कर चुकी है, क्योंकि प्रधानमंत्री जी ने कल कह दिया कि विपक्ष अलोकतांत्रिक है और कैग ने जो भी आरोप लगाया है उसका जवाब दिया जाएगा । मुझे भी लगता है कि सरकार इस साल के इलाहाबाद के कुंभ में अपने दाग को पूरी तरह से भले न धो पाये लेकिन त्रिवेणी के पानी से पोछकर अगले चुनाव में जरूर आएगी अपनी प्यारी और ईमानदार दोषी जनता के बीच ।
          लेकिन दोष तो अभी भी बाकी है । आखिर कोयला का दोषी कौन है, अगर दोष दिखावे के छापे से अलग सिद्ध होता है तब । तो मेरा मानना है और मुझे लगता है कि हमारे पूर्व और वर्तमान कोयला मंत्री जी लोग भी यही कहेंगे कि साहब हम तो जनता के सेवक हैं आखिर कुछ लोगों को दिया तो वे भी तो इसी लोकतन्त्र के अंग हैं । इसमें बहुत बौखलाने की क्या जरूरत है । और अगर जनता ऐसे विपक्ष को चुनकर भेजेगी तो हम क्या कर सकते हैं । इसके लिए तो जनता ही दोषी है और मैं भी उसी दोषी जनता की ओर से हूँ ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. क्योंकि आपने इस विषय पर सोचा, लिखा, अपना वक़्त दिया
    इसलिए मेरे ख़्याल से आपका दोष थोड़ा कम हो जाता है...
    nilnishu.blogspot.com

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    1. मुझे ऐसा नहीं लगता कि कुछ लिख देने या फिर सोचने से दोष कम हो जाता है, क्योंकि सरकार के कथनानुसार तो हम दोषी हैं ही.....

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  2. आज ब्लॉग अपने विचारों को व्यापक रूप में रखने का सबसे सफलतम माध्यम के तौर पर उभरा है .मैंने आप का यह आलेख पढ़ा .भ्रस्ट,जनतंत्र -विरोधी ,तानाशाही ,और अराजक सरकार के खिलाफ लिखा गया यह आलेख बेहद विचारोतेजक है .एक सफल बदलाव की सामाजिक क्रांति में बुद्धिजीवी के लेखन की अत्यंत दरकार होती है .इस दिशा में आपकी यह पहल बहुत ही सराहनीय है .निहसंदेह आप प्रशंसा के पात्र हैं ....................

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