संतोष कुमार राय
कोरोना
वायरस एक वैश्विक महामारी बनकर उभरा है। एक ऐसी महामारी जिसके वायरस को शायद ही
देखा जा सकता हो। इसका खतरनाक रूप विश्व के कई देशों को तबाह कर दिया है। यह बात
हर भारतीय को अब ठीक से समझ में आ गई है। वैसे भारत जैसे देश और उसमें भी ग्रामीण
भारत में लॉक डाउन करा देना कितना कठिन और असहज है, इससे हम सभी परिचित
हैं। शुरुआती कुछ दिन के अफवाहों को छोड़ दिया जाय तो कोरोना को लेकर सरकार की ओर
जारी हर एहतियात और निर्देश को लोगों ने बहुत गंभीरता से लिया है। भारत की
अव्यवस्थित चिकित्सा सुविधाओं और उसमें भी भगवान भरोसे चलने वाली ग्रामीण चिकित्सा
व्यवस्था के मद्देनजर आम जन में इसे लेकर बहुत खौफ और भय जैसा माहौल रहा और यह चिंता
सभी के मन में थी और अभी भी है कि अगर स्थिति बिगड़ गई तो इलाज तो बहुत दूर, हस्पतालों में पहुँचना भी आसान नहीं होगा। अमेरिका,
इटली, स्पेन और चीन जैसे समृद्ध राष्ट्र जब इस महामारी के
सामने घुटने टेक दिये हैं तो फिर भारत जैसे अल्पविकसित और अविकसित देश की क्या
औकात है।
इस
दौरान जो स्थिति रही उसे देखते हुए यह सवाल उठाना स्वाभाविक है कि 130 करोड़ से
अधिक की आबादी वाले इस देश को इस महामारी से कैसे बचाया जा सकता है? क्या
सरकार के पास ऐसे संसाधन मौजूद हैं जिनके सहारे देश को इस महामारी से बाहर निकाला
जा सकता है? शायद नहीं और इसे भारत की ग्रामीण जनता बहुत
गहराई से समझ रही है। फिर इससे बचने का एकमात्र और अंतिम उपाय यही था कि सरकार
द्वारा जारी निर्देशों का पालन किया जाय और इस महामारी को फैलने से रोका जाय, अन्यथा इसकी भयावहता व्याप्त होने में बहुत अल्प समय लगेगा।
अक्सर
ऐसा होता है कि ग्रामीण भारत मीडिया की नजर में उस तरह नहीं आ पाता जैसा कैमरे में
महानगरीय चमक-दमक को सहेजा जाता है। महानगरीय खबरों की बहुलता के बाद कुछ छोटे
शहरों की खबरें आती हैं उसके बाद ग्रामीण भारत की ओर कैमरा घूमता है जो स्क्रीन पर
जगह बनाने में लगभग नगण्य ही रहता है। जहाँ तक कोरोना के मद्देनजर भारत बंद का
प्रश्न है तो पिछले लगभग 15 दिनों में जो जागरूकता और गंभीरता देखने को मिली है वह
सहज ही हमारा ध्यान अपनी ओर खींचती है। 12-13 मार्च के आस-पास जब भारत में कोरोना
के केस बढ़ने लगे उस समय लोगों के मन में अनायास ही भय जैसा बन गया। सरकार की ओर से
जब कुछ सुझाव दिये जाने लगे तो लोगों का ध्यान कोरोना से बचने के उपायों की ओर
गया। प्रारंभिक चरण में जब राज्य सरकारों की ओर से विद्यालय,
कालेज और सिनेमाघरों को बंद करने का आदेश हुआ, साथ ही आम
लोगों के लिए जब साफ-सफाई के सुझाव और सुरक्षित रहने की चिकित्सकीय सलाह दी गई तो
आम जनमानस पूरी तरह सचेत हो गया। वहीं विश्व में कोरोना से मची तबाही की जो खबरें
आयीं उसका भी असर आम लोगों पर हुआ। लेकिन अभी तक वैसी सजगता नहीं आयी थी जैसी
कोरोना से बचने के लिए जरूरी थी।
कोरोना
से बचने के लिए प्रधानमंत्री ने जब एक दिन के जनता कर्फ़्यू की घोषणा किया तो सभी
को यह समझ में आ गया कि इससे बचाव का यही रास्ता है। कुछ एक अपवादों और कुछ
अफवाहों पर ध्यान न दिया जाय तो जनता कर्फ़्यू भारत के इतिहास में एक सफलतम कर्फ़्यू
में गिना जाएगा, साथ ही इससे प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का भी सहज अनुमान हो गया कि उनके
एक छोटे से अनुरोध पर पूरे देश में बाजार, दुकानें, सड़के, गाडियाँ सबकुछ बंद रहा। भारत जैसे देश में इस
तरह के बंद को सफल बना देना कितना कठिन है, इसका सहज अनुमान
लगाया जा सकता है जहाँ प्रतिरोधी आवाज में निकलने वाला हर तीसरा वाक्य लोकतंत्र की
हत्या होता है। लेकिन यह हुआ। न सिर्फ हुआ, बल्कि इसी से आगे
के बंद की राह भी निकली। मतलब प्रधानमंत्री और सरकार की ओर से यह एक प्रयोग था कि
लोग इसे किस रूप में ले रहे हैं और कितना सहयोग कर रहे हैं। एक दिन के जनता
कर्फ़्यू के मद्देनजर कुछ दूकानदारों, कुछ ग्राहकों और कुछ
अन्य व्यवसाय से जुड़े हुए लोगों से बात करने की कोशिश की गई। जिसमें सभी का जवाब
लगभग एक जैसा ही था कि प्रधानमंत्री ने अनुरोध किया है तो हमारे लिए ही किया है।
उन्हें हमारी चिंता है तभी किया है। इसलिए हम सभी का यह सामूहिक कर्तव्य है कि हम
सभी इसे सफल बनाने में सहयोग करें और ऐसा हम सबने किया।
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मार्च के जनता कर्फ़्यू की सफलता के बाद सरकार को समझ में आ गया कि कोरोना से
निपटने के इस तरीके को आगे बढ़ाया जा सकता है। 24 मार्च की मध्य रात्रि से कोरोना वायरस
से बचाव को लेकर संपूर्ण भारत में 21 दिन का लंबा लाक डाउन कर गया,
जिसकी घोषणा 24 मार्च को खुद प्रधानमंत्री ने की और समस्त
देशवासियों से हाथ जोड़कर अनुरोध किया कि वे घर से बाहर ना निकलें। शहरी और
महानगरीय भारत में जहाँ इसे लागू कराने में प्रशासनिक सहयोग लेना पड़ा तो वहीं
ग्रामीण भारत खुद इसे सफल बनाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखा रहा है। पिछले 15
दिनों में पूर्वी उत्तर प्रदेश और उससे सटे हुए बिहार के ग्रामीण
क्षेत्रों में जैसी जागरूकता देखने को मिली है, वह न सिर्फ
सराहनीय है बल्कि इस महामारी से बचाव में सहयोग न करने वाले लोगों और इसे गंभीरता
से न लेने वालों के लिए अनुकरणीय भी है।
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दिन के लाक डाउन को लेकर जब कुछ व्यावसायियों से बात की गई तो सभी का
जवाब कोरोना को हराने और देश को बचाने के पक्ष में था। बक्सर में होल सेल के कपड़ा
व्यवसायी राजेश से जब पूछा कि इस बंद को वे अपने व्यवसाय के से जोड़कर कैसे देख रहे
हैं तो उनका जवाब कुछ इस तरह था। उन्होने कहा कि लाक डाउन देश के लिए है, देश
के लोगों के लिए है जबकि मेरा व्यवसाय भी देश और देश के लोगों से ही है। अगर देश
और लोग ही नहीं रहेंगे तो मैं व्यवसाय किसके बीच और किसके लिए करूँगा। इसलिए इस
बंद को सफल बनाने के लिए मैं हर तरह के नुकसान के लिए तैयार हूँ। वहीं ग्रामीण
क्षेत्रों की दुकानों पर किराना की होल सेल सप्लाई करने वाले भुवन का जवाब तो और
हौसला देने वाला था। उसी सवाल के जवाब में उन्होने कहा कि आज राष्ट्र को हमारी जरूरत
है। अगर हम राष्ट्र के किसी भी काम आ गए तो यह हमारा सौभाग्य होगा। धंधा सिर्फ
जीवन यापन का साधन है। लेकिन यह साधन नहीं भी रहे ग और राष्ट्र रहेगा, लोग स्वस्थ रहेंगे, हम स्वस्थ रहेंगे तो अपनी मेहनत
से सबकुछ लूटा के भी दोबारा खड़ा कर सकते हैं। उन्होने कहा कि ऐसे समय में हमारी
ज़िम्मेदारी और बढ़ गई है कि हमारे पर जो भी संसाधन है उसके साथ हम अपने ग्राहकों और
जरूरतमंदों के बीच खड़ा रहे। प्रशासन के आदेश के अनुसार हम सभी हर तरह से अपने
लोगों के साथ अंतिम सांस तक खड़े रहेंगे। वहीं अन्य लोगों में कुछ ग्राहकों, कुछ छोटे दूकानदारों, कुछ किसानों, कुछ मजदूरों से भी बात की गई। सभी जा जवाब कोरोना से बचाव के लिए सरकार
के हर आदेश का पालन कराने के पक्ष में ही था। ये सारे जवाब सरकार और प्रशासन को न
सिर्फ हौसला देंगे, बल्कि इस महामारी को परास्त करके संगठित
और मजबूत राष्ट्र का सर्वोत्तम उदाहरण विश्व के समक्ष प्रस्तुत करेंगे।
ग्रामीण
भारत की यह तस्वीर कोरोना की लड़ाई में जैसा उदाहरण बन रहा है वह भारत के इतिहास
में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। इस बीच दैनंदिन श्रमिकों और कुछ गरीब लोगों के
साथ साथ ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ दिक्कतें भी आयी हैं लेकिन सरकार और प्रशासन की
संवेदनशीलता और सजगता ने उससे भी निपटने का रास्ता बना लिया है। कुलमिलाकर आम जन
इसे अपनी सुरक्षा, अपने परिवार तथा बच्चों की रक्षा के रूप में स्वीकार कर रहे हैं। इससे एक
उम्मीद बंधी है कि अगले 21 दिनों में भारत कोरोना से बहुत हद तक निपटने में कामयाब
होगा।
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