संतोष कुमार राय
1942 के स्वतंत्रता आन्दोलन का इतिहास बिना गाज़ीपुर का नाम लिए पूरा नहीं हो सकता। जिन गाँवों के लोग देश के लिए अपनी जान देने से पीछे नहीं हटे आज वे गाँव ऐसी जगह परे खड़े हैं जहाँ अब उनका नाम सिर्फ इतिहास के पन्नों में ही रह जायेंगे। उनका अस्तित्व अब गंगा के पानी में घुलकर हमेशा के लिए अब समाप्त हो जायेगा। शेरपुर ग्राम पंचायत का अटूट हिस्सा सेमरा-शिवराय का पूरा आज ऐसी जगह खड़ा है जहाँ बहुत कुछ गंगा के पानी में चला गया है और बहुत कुछ आने वाले कुछ दिनों में चला जायेगा। इस ग्राम पंचायत की कृषि योग्य सारी जमीन पिछले कई वर्षों से लगातार गिर रही है जिसे हमेशा से सरकार ने उपेक्षित रखा। बलिया में ऐसे कई गाँव हैं जिन्हें बांध बनाकर बचाया गया है। इसका कारण है कि वहां के जनप्रतिनीधि जागरूक थे और उन्होंने इसके लिए प्रयास किया, लेकिन गाज़ीपुर के प्रतिनीधियों ने न तो प्रयास किया और न ही सरकार की ओर से कोई सकारात्मक कदम उठाया गया। लिहाजा आज ये गाँव गंगा की गोद में जा रहे हैं।
सरकार को इस बात की जानकारी कई वर्षों से दी जा रही थी लेकिन पूरा प्रशासन कान में तेल डालकर सोया रहा। अब जब चुनाव नज़दीक है और सेमरा कुछ गिर गया और कुछ गिर रहा है तो सभी लोग अपनी चिंता जाहिर कर रहे हैं। विशेषकर सभी पार्टीयों के जन प्रतिनीधि। कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी से लेकर भाजपा, बसपा और सपा के स्थानीय नेता अपना ढोंग व्यक्त करने के लिए रोज़ आ-जा रहे हैं। पिछले दस सालों से प्रदेश में सपा और बसपा की सरकार है, क्यों नहीं उन गावों को बचाने का प्रयास हुआ। वर्तमान सरकार के विधायक पशुपति नाथ राय भी उसी क्षेत्र के रहने वाले हैं। पिछले पाँच सालों में उन्होंने क्या किया है? आप अगर अपने क्षेत्र के लोगों की समस्याओं को अपनी ही पार्टी के सरकार के सामने नहीं उठा सकते तो आपको राजनीति नहीं दुकानदारी करना चाहिए। अगर सरकार नहीं सुनती तो आप त्याग-पत्र तो दे सकते थे। तब समझ में आता कि आप अपने क्षेत्र के जनता के प्रतिनीधि हैं। पिछली सपा सरकार के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश सिंह भी उसी क्षेत्र से जीतते रहे हैं और गाज़ीपुर के ही रहने वाले हैं। उन्होंने भी वही किया जो गाज़ीपुर के साथ अन्य मंत्रियों ने किया। सपा के सांसद नीरज शेखर भी वहीं से जीतकर आये हैं, अन्ना के आन्दोलन पर टीवी चैनलों पर भाषण देने के लिए उनके पास समय है लेकिन अपने क्षेत्र के बारे में उन्हें पता ही नहीं है और अगर पता था तो अभी तक क्या किया। वह कौन सी राजनीति है जिसमें अपने क्षेत्र के लोगों की समस्याओं का निदान करना गलत है।
इस क्षेत्र की जमीनी सीमा बीस किलोमीटर से भी अधिक है। हजारों एकड़ जमीन गंगा की गोद में समा गयी। लोग भूखे मरने के कगार पर पहुँच गये। सारी की सारी कृषि योग्य उपजाऊ जमीन देखते-देखते रेत में तब्दील हो गयी। चुनाव आते रहे नेता जीतते रहे लेकिन किसी ने भी इसे बचाने की ओर ध्यान नहीं दिया। गाँव के गरीब किसान मजदूर इस आस में जी रहे थे कि सबकुछ गिर गया लेकिन अभी उनका गांव बचा है, घर बचा है लेकिन इस साल उनकी छोटी सी इस आशा का भी अंत हो गया। अब उनके सामने पुनर्वास की समस्या है। यह ऐसी समस्या है जिसके हल होने में पीढ़ीयाँ निकल जाती हैं। इस मंहगाई के दौर में जब लोग अपना पेट भरने में तबाह हैं ऐसे में वे गरीब लोग जिनके पास जिविकोपार्जन के नाम पर कुछ भी नहीं है कहां जायेंगे। उन लोगों की इस बदहाल स्थिति का जिम्मेदार कौन है? क्या सत्ता की रहनुमई करने वाले लोग, जो अपने को जनता का हितैषी बताते हैं और लम्बे-लम्बे भाषण देते हैं अभी तक क्या कर रहे थे। क्या उनका कोई कर्तव्य है या नहीं? बेघर होने वाले लोगों का दर्द कितना भयावह होता है इसका अंदाजा लगाना उन लोगों की क्षमता के बाहर है जिन्होंने कभी ऐसा दुख नहीं देखा।
सरकार के नुमाईंदो द्वारा की गयी उपेक्षा ने आज हजारों लोगों को सड़क पर खुले आसमान के नीचे रहने के लिए मजबूर कर दिया है। भूखे बच्चों और महिलाओं का क्या कसूर है कि आज अपने अच्छे खासे घरों से निकलकर बरसात में भिगने के लिए बेबस हैं? क्या इसका जवाब किसी भी राजनेता के पास है? उस क्षेत्र के और भी गाँव हैं जो इस साल नहीं तो अगले कुछ सालों में जरूर गिर जायेंगे। फिर सरकार और सरकार के लोग अपने इस कृत्य का बखान करेंगे।
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