कितना आत्मनिर्भर बना है पूर्वांचल

संतोष कुमार राय

‘आत्मनिर्भरता’ क्या है? इसे किस रूप में देखा जाय? स्वाधीनता के आठवें दशक में आज जब आत्मनिर्भर भारत की बात हो रही है तो इसका क्या मतलब निकाला जाय और इसे कैसे परिभाषित किया जाय? कुछ दिनों पहले जब भारत के प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत की बात की तो सहसा यह अचरज जैसा ही लगा कि आजादी के इतने सालों बाद आत्मनिर्भर भारत की बात क्यों हो रही है. ठीक वैसे ही जैसे  2014 में जब प्रधानमंत्री ने स्वच्छता अभियान की शुरुआत किया तो आम जन में यह भाव पैदा हुआ कि क्या यह भी प्रधानमंत्री का विषय है. क्या आम लोगों को स्वच्छता के विषय में पता नहीं है. लेकिन इसका परिणाम क्या हुआ. परिणाम यह हुआ कि ग्रामीण भारत का अधिकांश हिस्सा दैनंदिन दुर्गन्ध से मुक्त हो गया. सरकारी सहायता और आम जन की जागरूकता से आज स्वच्छता अभियान उस मुकाम पर पहुँच गया है, एक समय में जिसका अनुमान लगाना कठिन था.लेकिन यहाँ हमें यह नहीं भुलाना चाहिए कि इतिहास में इस बात का अनके जगहों पर जिक्र है कि भारत के सभी गाँव आत्मनिर्भर थे. प्रत्येक गाँव की अपनी स्वतन्त्र अर्थव्यवस्था थी. आखिरकार उसे कैसे क्षति पहुंची. आज फिर प्रधानमंत्री उसी की ओर क्यों संकेत कर रहे है.  

आज जब हम पिछले इतिहास पर नजर डालते हैं तो पता चलता है कि भारत कहाँ से चला था आज कहाँ पहुंचा है. वह कौन-कौन से क्षेत्र हैं जहाँ वास्तव में ग्रामीण भारत आत्मनिर्भर हुआ है और कौन-कौन से क्षेत्र हैं जहाँ अभी काम करने की जरुरत है. यह सही है कि भारत में जिस अनुपात में और जिस गति से जनसंख्या बढ़ी है उस अनुपात में संसाधनों का विकास नहीं हुआ है. लेकिन कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ भारत का बहुत तेजी से विकास हुआ है. सरकारी क्षेत्र और निजी क्षेत्र दोनों को समान रूप से काम करने की जरुरत है. लेकिन अभी भी भारत का निजी क्षेत्र सरकार की ओर देखता रहता है कि विकास का काम सरकार का है.

जब हम ग्रामीण भारत के विकास की पड़ताल करते हैं, कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हमारे सामने आते हैं. इस दृष्टि से सबसे पहले हम मनुष्य की बुनियादी आवश्यकताओं पर ध्यान देते हैं. यानि आज से कई दशक पहले ग्रामीण विकास की बुनियादी जरूरतों में रोटी, कपड़ा और मकान का उल्लेख हुआ. उसके बाद इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार शामिल हुआ. उसके बाद बिजली, पानी और संचार शामिल हुआ. अर्थात ग्रामीण विकास का मतलब हुआ कि भारत में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को रोटी, कपड़ा, मकान, शौचालय, एलपीजी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, बिजली, पानी, सड़क और संचार की मुकम्मल सुविधाएँ जब मिलेगी तभी पूर्णतः आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना सिद्ध होगी.

अब सवाल यह उठता है कि इन सारी आवश्यकताओं के बीच उत्तर प्रदेश कहाँ खड़ा है? इस संबंध में हमें कुछ बुनियादी चीजों की ओर नजर डालनी चाहिए जहाँ वास्तव में काम हुआ है. इस दृष्टि से जब हम देखते हैं तो सबसे पहले हमें रोटी, कपड़ा, मकान, बिजली और पानी दिखाई देता है. वर्तमान सरकार और पिछली सरकारों ने भी अनेक तरह से अन्न वितरण योजनाओं के माध्यम से भारत से बहुत हद तक भुखमरी समाप्त करने का हरसंभव प्रयास किया है और इसमें बड़े पैमाने पर सरकार को सफलता भी मिली है. अभी कोरोना काल में जिस तरह से सरकार की ओर से मुफ्त राशन वितरण किया गया वह असाधारण था. दूसरी बड़ी कामयाबी सरकार को संपूर्ण विद्युतीकरण में मिली है. अब भारत के लगभग सभी गाँवों में बिजली पहुँच गई है. लेकिन गाँवों से लगे हुए सुदूर हिस्सों में अभी भी कुछ जगहें हैं जहाँ विद्युतीकरण का कार्य जारी है. इसे बड़ी सफलता के रूप में लिया जाना चाहिए.

वर्तमान सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना स्वच्छता मिशन के माध्यम से अनेक गरीब, मजबूर, दिव्यांग और बुजुर्ग लोगों को मकान और शौचालय देकर बुनियादी विकास की ओर एक बहुत बड़ा कदम बढ़ाया है. वैसे गरीबों के लिए आवास योजना की शुरुआत बहुत पहले हो जानी चाहिए थी लेकिन यह बहुत देर से हुई. अब जब भारत के गाँवों में रहने वाले अधिकांश लोगों को आवास मिल चुका है या मिल रहा है तो यह माना जाना चाहिए कि विकास का पहला चरण पूरी तरह समाप्त होने की ओर है. रोटी कपड़ा मकान के साथ शौचालय और उज्ज्वला योजना का भी भरपूर लाभ ग्रामीण समुदाय को मिला है. वहीं बिजली के विस्तार से लगभग वे सभी घर प्रकाशमान हो रहे हैं जिन्हें अँधेरा भारत बना दिया गया था. इसी से जुड़ा हुआ पक्ष पीने के पानी का भी है, क्योंकि बिजली के बिना पीने के शुद्ध पानी की उपलब्धता सुचारू रूप से नहीं हो सकती. लेकिन प्रदेश और केंद्र सरकार की योजनाओं के माध्यम से उत्तर प्रदेश के लगभग सभी गाँवों में पीने के पानी का कार्य चल रहा है. यह उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय में उत्तर प्रदेश में पीने के स्वच्छ पानी का संकट लगभग समाप्त हो जायेगा. 

जहाँ तक संचार की बात है तो यह कहना गलत नहीं होगा कि पिछले कुछ समय में संचार के क्षेत्र में भारत को अभूतपूर्व सफलता मिली है. इस दृष्टि से उत्तर प्रदेश चहुओर सबल हुआ है. इसी तरह यातायात का विकास भी भारत के विकास का महत्वपूर्ण पक्ष है. पिछले दो दशक में सरकार की ओर से सभी गाँवों को मुख्य मार्गों से जोड़ने का जो सार्थक प्रयास हुआ है उसके परिणाम अब ग्रामीण भारत में दिखने लगे हैं. मसलन सड़कों से जुड़ने की वजह से भारत के शहर और महानगर ग्रामीणों की पहुँच में आ गए हैं. अर्थात गाँव से बाजार के जुड़ने से, शहर के जुड़ने से बहुत कुछ आसान हुआ है. इस तरह हम आत्मनिर्भर भारत की ओर उत्तर प्रदेश के बढ़ते हुए कदम को देख सकते हैं.

अब प्रश्न यह कि इतना होने से क्या भारत संपूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हो गया है? शायद नहीं.. उसका कारण क्या है? इसकी पड़ताल बहुत आवश्यक है. इसका सबसे बड़ा कारण है ग्रामीण समुदाय में लम्बे समय से घर किया हुआ अविश्वास. यह वह अविश्वास है जो अब हीनभावना में बदल गया है. हीनभावना यह है कि उन्हें लगता है कि गाँव में रहते हुए कोई कार्य नहीं किया जा सकता है जबकि शहरों में लोग अधिक खर्च और अधिक मेंहनत करके वही कार्य करते हैं. इसके कुछ वाजिब कारण भी हैं जिसमें बिजली, सड़क और बाजार सर्वाधिक महत्वपूर्ण ही. आज स्थितियां बदली हैं और इस बदली हुई परिस्थितियों में सामान्य लोग आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं. लेकिन अभी भी इसमें कुछ अड़चने हैं जिनका यदि निवारण हो गया तो भारत की तस्वीर बदलते देर नहीं लगेगी.

इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कार्य करने की जरुरत है. जैसे ग्रामीण भारत का बड़ा हिस्सा अभी भी अच्छी शिक्षा और अच्छी चिकित्सा के आभाव में जी रहा है. यही कारण है कि आम लोग सबकुछ दाव पर लगाकर, कठिन से कठिन जिंदगी जीते हुए भी शहरों की ओर भागते हैं, जिससे शहरों के जनसंख्या घनत्व में भारी वृद्धि हुई है. यदि शिक्षा और चिकत्सा की सुविधाओं का ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तर कर दिया जाता तो पलायन का बड़ा हिस्सा रूक जाता. उसके बाद आम तौर पर रोजगार करने के लिए जैसी सुविधाएँ शहरों में मिलती हैं, यदि वह उतने ही समय में और उतनी ही सहजता से गाँवों में भी मिलने लगे तो आत्मनिर्भरता और विकास की परिभाषा बदल जाती.

अंत में जब ग्रामीण भारत पर एक बार सम्पूर्णता से विचार किया जायेगा तो यह दिखेगा कि ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए निजी क्षेत्रों के बड़े-बड़े लोगों को भी रूचि दिखानी होगी. जो चीज जहाँ पैदा होती है उससे बनने वाली चीजों की कंपनियाँ उसी क्षेत्र में लगाने से आम लोगों की रूचि में भी वृद्धि होगी और इसका बहुत बड़ा प्रभाव राष्ट्र के विकास पर पड़ेगा. इस प्रकार अभी यह नहीं कहा जा सकता कि उत्तर प्रदेश आत्मनिर्भर बन गया है बल्कि यह कहना ज्यादा अच्छा होगा कि प्रदेश अभी आत्मनिर्भरता की राह में आगे बढ़ रहा है.

(23 अगस्त, 2020 के युगवार्ता में प्रकाशित)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

सरकार की विफलता या प्रशासनिक नाकामी

संतोष कुमार राय   उत्तर प्रदेश सरकार की योजनाओं को विफल करने में यहाँ का प्रशासनिक अमला पुरजोर तरीके से लगा हुआ है. सरकार की सदीक्षा और योजन...