संतोष कुमार राय
काशी हिंदू विश्वविद्यालय
चचा सबसे पहले आपको सादर प्रणाम करता हूँ...
प्रणाम इसलिए कि महामना के उस मंदिर ने नीच (जब तक उस पद पर रहे) को
प्रणाम करने का संस्कार दिया है. आप तो समझ ही गए होंगे कि मैं कौन और क्यों यह
सुझाव/सलाह आपको लिख रहा हूं. आप एकदम ठीक समझे हैं. उसी के लिए जो आपने पिछले
दिनों एक लडके से फोन पर बात करते हुए मुंह से गोबर किया था. वैसे मैं आपको तभी से
सुझाव देना चाह रहा था जबसे आपने धर्म विज्ञान संस्थान का नाम अपने कुकर्मों से
पूरे भारत में रोशन किया था. आप बहुत शरीफ लीचड़ हैं, यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं हो रहा है. आप जब
आए थे तो लंबा-लंबा, बड़ा-बड़ा भाषण फेंक रहे थे और हम लोग आपकी तरफ वको ध्यान लगाकर
टुकुर-टुकुर देख रहे थे कि अब महामना, राधाकृष्णन, शांति स्वरूप भटनागर जी के बाद सीधे आप ही उस
परिसर में अवतरित हुए हैं, जो कुछ बड़ा करके जाएंगे.
चचा आपको शायद जानकारी ना हो तो बता दूँ कि बीएचयू में एक वैज्ञानिक
हुआ करते थे डॉ शांति स्वरूप भटनागर, जिन्होंने लिखा है ना वही जो वहां गाया जाता है, जिसे आप अक्सर सुनते ही है... ‘मधुर मनोहर अतीव सुंदर, यह सर्व विद्या की राजधानी’ और उसके बाद सीधे आपका इस परिसर में प्रवेश हुआ और
आपका प्रवेश किसी घुसपैठिए की तरह था जो पाकिस्तान से सीधा कश्मीर घुसता है और
तड़ा-तड़, तड़ा-तड़ बमबारी करके तहस-नहस करने की भरपूर कोशिश
करता है और बहुत हद तक कर देता है. आप भी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहास में
एक घुसपैठिया की तरह ही आए थे. आने से पहले आपने जो चाल, चरित्र और चेहरा प्रस्तुत किया था, वह कुछ और था और आने के बाद आपने जो किया वह कुछ
और है. आप इतने बड़े आदमी नहीं है कि आपके ऊपर हम लोग अपना समय जाया करें लेकिन आज
जो खबर मीडिया में चल रही है कि आपने कहा है कि महामना को पैसों का पेड़ लगाकर
जाना चाहिए था. उनको नहीं पता था कि आप जैसे दिमागी रुप से गरीब और नीच लोग इस
परिसर में आएंगे और महामना को बताएंगे कि आपको पैसे का पेंड़ लगाकर जाना चाहिए था.
आपने फोन पर कहा है कि यूजीसी आपको 60 करोड़ देती है और बिजली का बिल आपका 66 करोड़
का आता है, बाकी तो कोई साधन-संसाधन विश्वविद्यालय के पास है
ही नहीं. मैं इसे आपकी बेशर्मी बिलकुल नहीं कहूँगा. मतलब यह कि जो इसकी पराकाष्टा
पर खड़ा हो उसे यह भी कोई कहने की बात है. आपको याद नहीं है तो मैं बड़ा देता हूँ कि
इतने बड़े परिसर में विद्यार्थियों की फीस मिलती है, हॉस्टल की फीस मिलती है, प्रतिदिन लाखों मरीज दिखाए जाते हैं, उनकी फीस आती है, कैंपस में और ना जाने कितने संसाधन हैं जिसका पैसा
विश्वविद्यालय में आता है, और वह पैसा इसलिए आता है उसे विद्यार्थियों की जरूरतों पर खर्च किया
जाए.
महोदय यह विश्वविद्यालय 1916 से चल रहा है. यह अपने उम्र के 100 वर्ष
पूरा कर चुका है फिर भी यह विश्वविद्यालय आपकी तरह मंदबुद्धि को प्राप्त नहीं हुआ
है जिससे बहुत जलते हैं. आप चाहते हैं कि विश्वविद्यालय भी आप जैसा हो जाय.
मंदबुद्धि क्या होता है आपको मैं बता देता हूँ. आप ठहरे विज्ञान के और मैं ठहरा
साहित्य का, और दोनों में ठीक वैसा ही संबंध है जैसा आपका
महामना के विचार से है. जो बात मैं आपको समझाना चाह रहा हूँ वह भावपूर्ण बातें हैं
और आप जो समझना चाह रहे हो तर्कपूर्ण बातें हैं. दिक्कत यही है कि आप अपने तर्कों
से और मैं कह रहा हूं कि आप अपने कुतर्कों से हमारे भाव को और हमारे जैसे लाखों
विद्यार्थी जो विश्वविद्यालय से पढ़कर निकले हैं और अलग-अलग जगहों पर हैं या पढ़
रहे हैं, उनके भाव को कुचलना चाह रहे हैं. आप जिस तरह की
भड़ैती विश्वविद्यालय में कर रहे हैं इसकी निकृष्टता का अनुमान आपको बखूबी है. चचा
नैतिकता के आधार पर तो मैं नहीं कहूंगा क्योंकि वह तो आपके पास है ही नहीं तो
अनैतिकता के आधार पर ही विश्वविद्यालय को जितनी जल्दी हो सके छोड़कर चले जाइए.
जितना बेडा गर्क करना था आपने खूब किया है.
इसका कारण क्या है, यह भी आपको बता देता हूँ. चचा आप अब चौथे पन की ओर
बढ़ रहे हैं. यह ऐसी उम्र है जिसमें आप जैसे लोग मानसिक दिवालिया और बौद्धिक कुपोषण
का शिकार हो जाते हैं. आपकी उम्र बुद्धि, विवेक, ज्ञान, शील से बहुत आगर निकल चुकी है. ऐसी स्थिति में आपो
मेरा सलाह है कि अब आपको सीधा बनवास चले जाना चाहिए, उससे पहले रुकना ही नहीं चाहिए. आपको तो पता ही है
कि वहाँ के बच्चे आपका कितना सम्मान करते हैं. यह बच्चे आपके आफिस में प्रवेश करने
से पहले बाहर ही अपना जूता चप्पल उतार देते हैं और इसीलिए उतार देते हैं क्योंकि
आपका सम्मान करते हैं, लेकिन आप तो उसे कुछ और ही समझ रहे हैं. आप इतने बड़े परिसर में
राष्ट्रपति की तरह विराजमान हैं और ज्ञान दे रहे हैं कि अर्थव्यवस्था कैसे चलेगी.
जो विश्वविद्यालय पूरे देश की अर्थव्यवस्था को ठीक करता रहा है, जो विश्वविद्यालय पूरे देश की अर्थव्यवस्था में
सहयोग करता रहा है, उस विश्वविद्यालय की अर्थव्यवस्था को आप बता रहे हैं कि अर्थव्यवस्था
कैसे चलेगी. आपको शर्म आने को तो मै नहीं कह सकता और डूब मरेना कहकर अशिष्टता तो
कत्तई नहीं. मुझे पूरा भरोसा है इन दोनों स्थितियों में आपके लिए सबसे जरूरी दो
चीजें हैं. महामना ने मंदबुद्धि और क्षीण शारीर के लोगों के लिए वहाँ एक गौशाला का
निर्माण करवाया था. अभी भी वह डेयरी फार्म के नाम से चल रहा है. आप वहां से गाय का
शुद्ध दूध मंगाइए और एग्रीकल्चर वालों से कहिए कि वहां जो सरसों पैदा होता है उसका
एकदम शुद्ध सरसों का तेल भी मुहैया कराएँ. तो चचा दबा के दूध पीजिए और अपनी गंजी
कटोरदान रूपी खोपड़ी पर आधा किलो सरसों का तेल लगाईये और अपने गठ्ठरनुमा शरीर को
कुछ देर तेज धुप में सेकिये. इससे थोडा बहुत जो जीवन बचा हुआ है हो सकता है उसका
निर्वाह हो जाये.
देखिये न चचा आपको पैसों के पेंड़ वाली सलाह पर ज्ञान देना तो भूल ही
गया था. वह क्या है कि आपको पेड़ तो वहाँ बहुत हैं और आपने सभी को खूब हिलाया भी है, समझ रहे हैं न. चिंता मत कीजिये मैं किसी को
बताऊंगा नहीं. मुझे क्या मतलब है. लेकिन एक बात बता देता हूँ चचा ज्यादा पैसा-पैसा
करना भी ठीक नहीं होता है. आप जहाँ इस समय हैं वहाँ की स्थानीय भाषा में पैसा का
अर्थ बहुत खराब होता है. मुझे पता है आप बहुत उतावले हैं और इसका अर्थ जानने के
लिए आप परेशान हो जायेंगे इसलिए बता देता हूँ. पैसा से ही पैसाना बना है. पैसाना
का मतलब घुसाना होता है. चचा अब जरा सोचिये पैसा क्या क्या करा देगा. तो आपके बचे
जीवन के लिए शुभकामनाएँ फेंकता हूँ और बाबा विश्वनाथ से अनुरोध करता हूँ कि आपको
कुछ सदबुद्धि दें ताकि आपकी लोलुपता पर कुछ विराम लगे. अब खुद को रोकता हूँ चचा.
नमस्कार
एक पूर्व छात्र जो आपके कुकर्मों से आहत है.
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