आंध्र प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार के बीच विवाद

संतोष कुमार राय 


पिछले कुछ दिनों से चली आ रही  टीडीपी और केंद्र सरकार के बीच की खींचतान, आरोप-प्रत्यारोप को गहराई से समझने की आवश्यकता है. इसके कई पहलू हैं. कुछ दिखाई दे रहे हैं और कुछ इस विवाद की जड़ में हैं. विशेष राज्य के दर्जे की मांग एक प्रत्यक्ष और स्पष्ट मुद्दा है लेकिन इसके पीछे जो मुद्दा है, वह नितांत राजनीतिक है. टीडीपी एनडीए की सहयोगी पार्टी रही है और पिछले चार वर्षों में केंद्र सरकार के हर फैसले का निर्विवाद समर्थन करती रही है. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि टीडीपी एनडीए से बाहर चली गई. अब सवाल उठता है कि जिस विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर टीडीपी ने खुद को एनडीए से बाहर किया क्या वह पिछले चार साल में याद नहीं आया? क्या इसका एक पहलू लोकसभा और विधानसभा चुनाव की प्राथमिक तैयारी नहीं है? क्या इससे पहले एनडीए सरकार ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसका विरोध किया जा सकता था? असल में इस पूरे प्रकरण में जो बात सामने आ रही है उसे ध्यान में रखते हुई एकबारगी यह नहीं कहा सकता कि इसका राज्य और केंद्र के चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है.

विवाद में छिपे राजनीतिक हित

दरअसल, यह पूरी कवायद चंद्रबाबू नायडू की एक सधी हुई राजनीतिक चाल है. चंद्रबाबू नायडू ने पिछले चार वर्षों में एनडीए का हिस्सा होते हुए कभी भी इतना आक्रामक रुख अख्तियार नहीं किया, जैसा पिछले दिनों देखने को मिला. आखिर ऐसा कौन सा कारण है जिसकी वजह से चंद्रबाबू नायडू ऐसा कर रहे हैं. असल में नायडू अपने पूरे शासन काल को लेकर आम जन के विरोध को अपनी सत्ता पर न लेकर भाजपा पर थोपना चाहते हैं. आन्ध्र प्रदेश में 2014 से टीडीपी की सरकार है, जिसे लेकर आम जनता में कुछ नाराजगी है और यह आशंका जताई जा रही थी कि हो सकता है कि इसका लाभ वाईएसआर कांग्रेस को मिले. लिहाजा, इस तरह की नाराजगी की दिशा बदलने के लिए यह सुनियोजित तरीके से चली गई एक राजनीतिक चाल भी हो सकती है, ताकि आम जनमानस में यह सन्देश जाए कि टीडीपी प्रदेश के विकास के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन केंद्र की भाजपा सरकार विकास कार्य को सहयोग नहीं कर रही है. दूसरी ओर इसका लाभ यह होगा कि आम जन के दिमाग में यह बात बैठ जायेगी कि भाजपा प्रदेश विरोधी है और टीडीपी आम जनमानस की नजर में साफ-सुथरी और विकास के प्रति प्रतिबद्ध पार्टी के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल रहेगी.

क्या है विशेष राज्य का दर्जा?

जब कोई राज्य किसी कारण से आर्थिक रूप से पिछड़ जाता है और उसकी विकास की गति अन्य राज्यों की अपेक्षा धीमी हो जाती है तो विशेष राज्य के दर्जे की मांग की जाती है. दूसरा कारण भौगोलिक बनावट भी है, जिसकी वजह से कुछ राज्यों में औद्योगिक इकाइयों को लगाना काफी कठिन होता है. ऐसे राज्यों में बुनियादी ढांचे की कमी होती है. ऐसे में विकास के मामले में ये पिछड़ते चले जाते हैं. इन राज्यों के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए केंद्र द्वारा विशेष राज्य का दर्जा देकर विकास गति को तेज करने के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है. ताकि ये राज्य अन्य राज्यों के साथ चल सके.

विशेष राज्य का दर्जा किस आधार पर दिया जाता है?

राष्ट्रीय विकास परिषद के अनुसार वैसे राज्यों को ये दर्जा दिया जा सकता है, जहां संसाधनों की कमी हो, राज्य में प्रति व्यक्ति आय अन्य राज्यों और केंद्र के मानक की अपेक्षा कम हो, राज्य की आय के स्रोत कम हों, आबादी का बड़ा हिस्सा जनजातीय समुदाय का हो, राज्य पहाड़ी और दुर्गम इलाकों में स्थित हो, वहां का जनसंख्या घनत्व कम हो या राज्य अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास स्थित हो.

इससे राज्य को क्या फायदा होता है?

चूँकि, यह सहायता केंद्र की ओर से दी जाती है, इसलिए इसमें विशेष राज्य का दर्जा मिलने के बाद केंद्र सरकार की तरफ से मिलने वाली राशि का 90 प्रतिशत मदद के रूप में मिलता है, जबकि सिर्फ 10 प्रतिशत राशि ही बतौर कर्ज होती है. वहीं सामान्य राज्यों को सिर्फ 30 प्रतिशत राशि मदद के रूप में मिलती है और इसका 70 प्रतिशत हिस्सा कर्ज होता है. इसके अलावा, विशेष राज्य का दर्जा जिस राज्य को मिलता है उसे एक्साइज ड्यूटी, कस्टम ड्यूटी, कॉरपोरेशन टैक्स, इनकम टैक्स के साथ कई अन्य करों में भी छूट दी जाती है.

किन-किन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिल चुका है

देश के 29 राज्यों में से अब तक 11 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिल चुका है. शुरुआत में 1969 में जब गाडगिल फॉर्मूला के आधार पर विशेष राज्य के दर्जे की शुरुआत हुई थी. उस समय असम, नागालैंड के साथ जम्मू और कश्मीर को ये दर्जा दिया गया था. बाद में केंद्र सरकार की तरफ से अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड को भी ये दर्जा दे दिया गया.

आंध्र प्रदेश के साथ अन्य राज्य भी इस मांग को उठाते रहे हैं

फिलहाल विशेष राज्य के दर्जे की मांग आंध्र प्रदेश में टीडीपी सरकार उठा रही है. उनका तर्क है कि आंध्र प्रदेश से तेलंगाना के अलग होने और हैदराबाद का तेलंगाना की राजधानी बनने के बाद इस राज्य को काफी नुकसान हुआ है. इसलिए उसे यह दर्जा मिलना चाहिए. आंध्र के अलावा बिहार में भी काफी समय से विशेष राज्य के दर्जे की मांग की उठती रही है. 2005 में सत्ता में आने के बाद से ही वहां की सत्ताधारी पार्टी जेडीयू बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करती रही है. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी पिछले काफी समय से राज्य के लिए विशेष दर्जा की मांग कर रहे हैं. इन सबके अलावा, राजस्थान और गोवा से भी विशेष राज्य के दर्जे की मांग उठती रही है.

आंध्र प्रदेश सरकार आर्थिक आंकड़ों की बजाय राजनीतिक समझौते की बुनियाद पर केंद्र से यह मांग कर रही है, जबकि इस वित्त आयोग में विशेष राज्य के दर्जे को खत्म करने की बात हुई है. दूसरी ओर, केंद्र सरकार अतिरिक्त आर्थिक पैकेज देने पर तो राजी है लेकिन राज्य की स्थिति को देखते हुए विशेष राज्य के दर्जे के लिए तैयार नहीं है. भारत के अन्य राज्यों की स्थिति, वहां की बुनियादी सुविधाओं और प्रतिव्यक्ति आय को ध्यान में रखते हुए आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा देना संभव नहीं है.

 (21 अप्रैल 2018 को janbhav.com पर प्रकाशित) 



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