सन्तोष कुमार राय
चंद्रकांत
देवताले समकालीन कविता के लोकप्रिय और चहेते कवि रहे हैं। चंद्रकांत देवताले का
जाना एक ऐसे कवि का जाना है, जिसने हमारे जीवन के अनेक मोहक और संघर्ष के क्षणों के साथ गहरी
संवेदनाओं को पिरोकर कविता बना दिया। आम जीवन के साथ, उनकी
कविताओं में वह सबकुछ समाहित है जिसे हम जीते हैं, जिसे हम
जानते हैं, जिसे हम देखते हैं, जिसे हम
महसूस करते हैं। उनकी कविताओं में जितनी बेबाकी है उतनी ही गहराई है। एक सकारात्मक
दृष्टिकोण और विचार के कवि के रूप में हिंदी जगत में अपनी पहचान बनाने वाले
चंद्रकांत देवताले के जाने से हिंदी जगत एक खालीपन का अनुभव कर रहा है। अपने जीवन
की और कविता की भरपूर उम्र जीने के बाद उनका जाना बहुत अस्वाभाविक नहीं है।
चंद्रकांत देवताले ने आधुनिक हिंदी कविता के जिस पक्ष को अपनी कविताओं में जगह दी
वह कोई नायाब या बहुत अलग चीज नहीं थी। बहुत साधारण से साधारण विषय को उठाकर बड़ी
कविता बना दिया। यह विशेषता आज बिरले दिखाई देती है। यदि वैचारिक प्रतिबद्धता से
थोड़ा अलग होकर देखा जाय तो चंद्रकांत देवताले की कविताओं में एक आशा, उम्मीद, सकारात्मकता,
जिजीविषा और रिश्तों के प्रति गहरी आत्मीयता दिखाई देती है। जबकि उनके समकालीन और
समवैचारिक अनेक कवियों में अनेक तरह के नैराश्य और अवसाद का भाव दिखाई देता है।
वैसे तो
चंद्रकांत देवताले ने अस्सी वर्ष का अच्छा जीवन जिया, लेकिन रचनाकर का जीवन कभी लंबा
कहाँ हो पाता है। हमेशा ऐसा लगता है कि कुछ दिन और रह जाते तो कुछ और दे जाते। ‘लौटना’ चंद्रकांत देवताले की कविताओं में कई जगह आया
है। ‘बेटी के घर से लौटते हुए’ शीर्षक
कविता में लिखते हैं कि-- ‘सोचता पिता
सर्दी और नम हवा से बचते / दुनिया में सबसे कठिन है शायद / बेटी के घर लौटना।’
किसी भी
साहित्यकार की अपनी वैचारिक पक्षधरता उसकी वैचारिक बनावट के अनुसार होती ही है और
देवताले की कविताओं में भी उनका वैचारिक मोह कहीं-कहीं सामने आया ही है, लेकिन देवताले कविताओं में सजग
और चौकन्ने दिखते हैं, जिससे कविताएं नारा नहीं बन पायी है, बल्कि गहरी संवेदनाओं के साथ अभिव्यक्त हुई हैं,
जैसे—उसके कुचले सपनों की मुट्ठीभर राख / किस हंडिया में
होगी या अथवा / और रोजमर्रा की चीजें / लाता होगा कितना जर्जर पारदर्शी शरीर पर / पेट में होंगे कितने दाने
या घास-पत्तियां / उसके इर्द-गिर्द कितना घुप्प होगा / कितना जंगल में छिपा हुआ जंगल / मृत्यु से कितनी दुरी पर या नजदीक होगी।
या घास-पत्तियां / उसके इर्द-गिर्द कितना घुप्प होगा / कितना जंगल में छिपा हुआ जंगल / मृत्यु से कितनी दुरी पर या नजदीक होगी।
देवताले ने जीवन
और जगत के अनेक पक्षों को अपनी कविताओं में बहुत ही सहज ढंग से शामिल किया है। सामान्य
जीवन की जरूरतों को, उसके अनेक रूपों को, संबंधों को, जनजीवन की रोज़मर्रा की अनेक समस्याओं पर कविताएं हैं, जैसे-- मैं उसे नहीं बता पाया / की कसाईख़ाने में काम करते
शाकाहारी की तरह / मै ज़िन्दा हूँ इस
दुनिया में / और शामिल हूँ उन्ही में जो
/ अपनी करुणा की तबाही और / अपने साहस की हत्या के लिए / दूसरों को अपराधी समझ रहे
हैं।
चंद्रकांत देवताले अपनी कविताओं माध्यम
हमारे बीच हमेशा रहेंगे। मानवता की गहरी परख उनकी कविताओं का आधार है। उनकी कई
कविताओं में बार-बार आने की बात आती है। और यह साचा भी है कि जब भी समकालीन कविता
और काव्यात्मक संवेदना की चर्चा होगी, चंद्रकांत देवताले हमेशा हमारे बीच उपस्थित रहेंगे। यही
कारण है बड़ा साहित्यकार कभी भी दुनिया से जाता नहीं है बल्कि वह जाने के बाद भी
अमर हो जाता है। रचनाकार की रचनाएँ उसे अमरत्व प्रदान करती हैं। वह हमेशा अशेष
रहता है। कुलमिलाकर श्रद्धांजलि स्वरूप यह कहा जा सकता है कि चंद्रकांत देवताले
हिंदी कविता के वर्तमान हैं जो किसी न किसी रूप में साहित्य जगत को हमेशा झकझोरते
रहेंगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें