खाप की बदलती चाल

 संतोष कुमार राय


खाप पंचायतों के द्वारा हाल ही में समाज को लेकर कुछ सकारात्मक बदलाओं की बात की गई है। यह बदलाव उस समय हुआ है जब हरियाणा की मानुषी छिल्लर ने मिस वर्ल्ड का खिताब हासिल किया है। हरियाणा और दिल्ली के 11 गांवों से मिलकर बने छिल्लर-छीकारा खाप ने वैवाहिक समारोहों में हर्ष फायरिंग के रिवाज को प्रतिबंधित कर दिया है। इसी के साथ खाप नेताओं ने शादियों में डीजे बजाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद समाचारों में  खाप नेताओं के जो बयान सामने आये हैं वह रोचक भी हैं, उन्हें प्रगतिशील भी कहा जा रहा है, उनसे बदलाव की उम्मीद भी की जा रही है, उनका सामाजिक विश्लेषण भी हो रहा है। अब यहाँ यह समझने वाली बात है कि क्या वाकई खाप पंचायतें अपने रूढ़िवादी, तानाशाही और घनघोर अंधविश्वासी आवरण से बाहर निकालने की कोशिश कर रही हैं ? यदि इसे सकारात्मकता के तौर पर देखा भी जाये तो हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि खाप पंचायतों के अनेक फरमानों की अनदेखी करते हुए हरियाणा की लड़कियां देश-विदेश में अपनी सफलता का लोहा मनवा रही हैं।  ऐसे में यह सवाल उठाना स्वाभाविक है कि क्या खाप पंचायतें अब अपने रुख में सुधारवादी हो रहीं हैं?

दरअसल इस पूरे प्रकरण को दो भागों में बांटकर देखना जायदा समीचीन होगा। एक ओर खाप पंचायतों के फैसले और दूसरी ओर मानुषी छिल्लर का मिस वर्ल्ड बनना। यदि खाप वास्तव में प्रगतिशील रुख अख़्तियार कर रहा है तो सबसे पहले उसे अपने पुराने प्रतिबंधों को खत्म करने की घोषणा करनी चाहिए। जो नहीं हुआ। ऐसे अनेक कठोर, अमानवीय, पुरुषवादी और अप्रासंगिक फैसले खाप ने महिलाओं के लिए दिये हैं जिनकी गिनती नहीं की जा सकती। क्या उनमें से एक को भी खत्म करने या उनके अमान्य होने की बात हुई है ? नहीं हुई है। फिर एक छोटे से बदलाव के आदेश के आधार पर लहालोट होने वाली मीडिया भ्रम की जमी हुई परत से बाहर निकले। कोई भी सामाजिक बदलाव सिर्फ एक या दो बिंदुओं  से तय नहीं किया जाना चाहिए।

इसका दूसरा पक्ष भी है, जो निश्चित ही सकारात्मक और विचारणीय है। असल बात यह है कि खापों की जद में आने वाले लोगों का अब दो वर्ग है। यह समुदाय अब उच्चवर्ग और निम्नवर्ग में पूरी तरह विभाजित हो गया है। उच्चवर्ग वह है जो ज्यादातर शहरी समुदाय के रूप में है या जिसने गाँव छोड़ दिया है। ग्रामीण समुदाय का अधिकतर हिस्सा और शहरी मजदूर, जिनका जुड़ाव अभी भी गाँव से है, ये निम्न वर्ग में हैं। खाप के सारे फैसले मानने के लिए निम्नवर्ग ही अभिशप्त है। उच्चवर्ग के लिए किसी खाप का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि यदि ऐसा होता तो मानुषी छिल्लर मिस वर्ल्ड में भागीदारी नहीं करती। इस संदर्भ में खापों के पुराने फरमानों को ध्यान में रखना चाहिए।

खापों की ओर से मानुषी के स्वागत की घोषणा और उनके नेताओं की ओर से इससे जुड़े हुए बड़े-बड़े बयान भी जारी किए गए हैं। दो बातें बहुत स्पष्ट हैं। पहली कि यह कदम खापों की हताशा लगातार हो रही अवमानना से उठे हैं और दूसरा कि लगातार कम होती विश्वसनीयता को पुनर्जीवित करने के लिए मानुषी जैसी लड़कियों की सफलता के माध्यम से खापों को प्रगतिशील घोषित करने कि साजिश। इन बयानो को समझने की जरूरत है। खाप के इन फैसलों का ऐलान दिल्ली के निजामपुर और झज्जर के कह्नोद गांव में हुई महापंचायत के बाद और अचानक हुआ है। कुछ अखबारों के अनुसार उनके नेता मानुषी की जीत को खाप के लिए गौरव का लम्हा मान रहे हैं। उनका कहना है कि 'हम पर पूरी दुनिया की नजर है, इसलिए हम इस मौके का फायदा उठाकर समाजिक परिवर्तन लाना चाहते हैं। हमारे फैसलों से समारोहों में अनाप-शनाप खर्चों की संस्कृति पर रोक लगेगी।' उनके अनुसार “शादी जैसा खुशी का मौका अक्सर परिवार पर बड़ा बोझ बन जाता है। नतीजतन कई परिवारों पर बहुत कर्ज हो जाता है।”— असल बात यह है । वहीं छिल्लर समुदाय इस फैसले से खाप का प्रगतिशील चेहरा उजागर होने की बात कर रहा है। उनका कहना है कि  'हमारा जोर सामाजिक सुधार पर है।' वहीं वे मानुषी छिल्लर के लिए खाप की ओर से शानदार स्वागत करने का फैसला भी लिया है। 

कुल मिलाकर इसे ऐसे किसी प्रगतिशील बदलाव के रूप में अभी देखना थोड़ी जल्दबाज़ी होगी। आने वाले समय में खापों के द्वारा लिए गये निर्णयों को देखना जरूरी होगा यदि खप पंचायतें अपने रुख और विचार में अतीत से अलग कोई राह बनाती हैं तो ही इसे प्रगतिशील रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए अन्यथा यह नितांत अवसरवादी और सामयिक के अलावा और कुछ भी नहीं है।

(17 सितंबर, 2017 के युगवार्ता में प्रकाशित)

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